Toll Plaza New Rule – भारत में पिछले कुछ वर्षों में हाईवे और एक्सप्रेसवे का जाल तेजी से फैला है। इसी के साथ टोल प्लाजा की संख्या में भी लगातार इजाफा हुआ है। जब आप एक शहर से दूसरे शहर जाते हैं तो आपको हर कुछ किलोमीटर पर टोल टैक्स देना पड़ता है, जिससे कई बार यात्रियों को काफी असुविधा होती है। ऐसे में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने यात्रियों को राहत देने के लिए टोल प्लाजा से जुड़े कुछ जरूरी नियम और दिशा-निर्देश तय किए हैं। इनमें सबसे अहम नियम है कि दो टोल प्लाजा के बीच कम से कम कितनी दूरी होनी चाहिए।
क्या है 60 किलोमीटर की दूरी वाला नियम
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने साल 2008 में एक नियम बनाया था जिसके अनुसार किसी भी नेशनल हाईवे पर दो टोल प्लाजा के बीच कम से कम 60 किलोमीटर की दूरी होनी चाहिए। इसका मतलब यह है कि अगर आप एक टोल प्लाजा से गुजर चुके हैं तो अगले टोल प्लाजा तक कम से कम 60 किलोमीटर का सफर तय करना होगा। यह नियम इसलिए बनाया गया है ताकि यात्रियों पर बार बार टोल टैक्स का बोझ न पड़े और यात्रा खर्च ज्यादा न हो।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी कई बार इस नियम को दोहराया है और कहा है कि सरकार का प्रयास है कि सभी हाईवे पर यही व्यवस्था लागू हो। हालांकि कुछ खास परिस्थितियों में इस नियम से छूट भी दी जा सकती है।
कब हो सकता है नियम में अपवाद
मंत्रालय के अनुसार कुछ मामलों में 60 किलोमीटर से कम दूरी पर भी दो टोल प्लाजा लगाए जा सकते हैं। जैसे अगर किसी इलाके में भारी ट्रैफिक है या फिर कोई बड़ा जंक्शन है जहां ट्रैफिक को संभालना जरूरी है तो वहां यातायात को सुचारू बनाए रखने के लिए दो टोल बूथ लगाए जा सकते हैं। इसके अलावा यदि जगह की उपलब्धता कम हो और वहां से बड़ी संख्या में वाहन गुजरते हों तो ऐसी स्थिति में यह छूट दी जाती है।
लंबी कतारों पर टोल नहीं देना होगा
एक और राहत देने वाला नियम यह है कि अगर किसी टोल प्लाजा पर वाहनों की कतार 100 मीटर से ज्यादा लंबी हो जाती है तो वहां खड़े वाहनों को टोल टैक्स दिए बिना निकलने दिया जाएगा। यह नियम राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण यानी एनएचएआई ने लागू किया है।
इस नियम का मकसद है कि यात्रियों को बेवजह टोल पर खड़ा न रहना पड़े और ट्रैफिक जाम से बचा जा सके। हर टोल प्लाजा पर एक पीली लाइन होती है जो टोल बूथ से 100 मीटर की दूरी पर खींची जाती है। जब कतार इस लाइन को पार कर जाती है तो टोल फ्री कर दिया जाता है। जैसे ही लाइन के भीतर गाड़ियां आ जाती हैं तो फिर से टोल वसूली शुरू हो जाती है।
रोड टैक्स और टोल टैक्स में फर्क समझिए
कई लोग रोड टैक्स और टोल टैक्स को एक जैसा समझ लेते हैं लेकिन दोनों में जमीन आसमान का फर्क है। रोड टैक्स वह टैक्स होता है जो आप अपने वाहन के रजिस्ट्रेशन के समय राज्य सरकार को देते हैं। यह एक बार का टैक्स होता है या फिर कुछ राज्यों में सालाना या छह महीने में देना होता है।
इस टैक्स से जो पैसा आता है वह राज्य सरकार की सड़कों के निर्माण और रखरखाव में खर्च किया जाता है। वहीं टोल टैक्स उस समय लिया जाता है जब आप किसी खास हाईवे या एक्सप्रेसवे पर सफर करते हैं। यह शुल्क उस रोड के निर्माण और देखभाल की लागत निकालने के लिए लिया जाता है।
टोल टैक्स की रकम सीधे उस कंपनी को जाती है जिसने उस सड़क का निर्माण किया है या फिर एनएचएआई को मिलती है। राज्य सरकार को इससे कोई कमाई नहीं होती।
फास्टैग और जीपीएस आधारित टोल वसूली की तैयारी
सरकार लगातार टोल वसूली की प्रक्रिया को आसान और पारदर्शी बनाने की दिशा में काम कर रही है। फास्टैग सिस्टम इसी का उदाहरण है जिसने टोल प्लाजा पर लंबी कतारों और कैश लेनदेन की समस्या काफी हद तक खत्म कर दी है।
अब सरकार आगे जीपीएस आधारित टोल वसूली सिस्टम लाने की तैयारी में है। इसमें वाहन में लगे जीपीएस के जरिए यह ट्रैक किया जाएगा कि आपने कितनी दूरी तय की और उसी के हिसाब से आपसे टोल वसूला जाएगा। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि यात्रियों को हर टोल प्लाजा पर रुकने की जरूरत नहीं होगी और ट्रैफिक भी सुचारू रहेगा।
यात्रियों की शिकायतों के लिए होगी विशेष व्यवस्था
सरकार टोल प्लाजा पर यात्रियों की परेशानियों के समाधान के लिए भी नई व्यवस्था बना रही है। इसके तहत हर टोल प्लाजा पर एक शिकायत निवारण अधिकारी तैनात किया जाएगा जो वहां आने वाली समस्याओं का तुरंत समाधान करेगा।
अगर आप भी हाईवे या एक्सप्रेसवे पर सफर करते हैं तो यह जान लेना जरूरी है कि टोल टैक्स को लेकर अब सरकार काफी सख्त हो गई है और यात्रियों की सुविधा का भी पूरा ध्यान रखा जा रहा है। 60 किलोमीटर की दूरी का नियम, लंबी कतारों पर टोल फ्री की सुविधा, फास्टैग और भविष्य की जीपीएस तकनीक यह सब यात्रियों के सफर को आसान और सस्ता बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।