Gas Cylinder Price – मई महीने की शुरुआत एक राहत की खबर लेकर आई है, लेकिन यह राहत हर किसी के हिस्से नहीं आई। खासकर होटल, ढाबे, बेकरी, टिफिन सर्विस और कैटरिंग जैसे छोटे व्यापारियों के लिए यह खबर वाकई राहत देने वाली रही। इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन यानी आईओसी ने एक मई 2025 से 19 किलो वाले कमर्शियल एलपीजी सिलेंडर की कीमतों में कटौती कर दी है। कीमतों में करीब 41 रुपये से लेकर 44.50 रुपये तक की कमी की गई है, जो बड़े शहरों में साफ तौर पर देखने को मिल रही है।
बड़े शहरों में क्या हैं नए रेट
देश के चार प्रमुख महानगरों में इस कटौती के बाद नई कीमतें कुछ इस तरह से तय की गई हैं। दिल्ली में पहले जो सिलेंडर 1803 रुपये का मिलता था, अब उसकी कीमत घटकर 1762 रुपये हो गई है। मुंबई में 1755.50 से घटकर यह 1713.50 रुपये हो गया है। कोलकाता में यह अब 1913 रुपये से घटकर 1868.50 रुपये हो गया है, और चेन्नई में 1965.50 से घटकर 1921.50 रुपये हो चुका है। यह बदलाव उन लोगों के लिए काफी मायने रखता है जो कमर्शियल लेवल पर गैस सिलेंडर का इस्तेमाल करते हैं।
छोटे कारोबारियों को बड़ी राहत
जो लोग टिफिन सेवा चलाते हैं, शादी या पार्टी में कैटरिंग करते हैं, होटल या ढाबा चलाते हैं, उनके लिए हर महीने गैस की लागत में सीधा असर पड़ता है। कई छोटे कारोबारी ऐसे होते हैं जो हर महीने 10 से 20 सिलेंडर का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में अगर हर सिलेंडर पर उन्हें 40 से 45 रुपये की बचत हो रही है, तो उनका कुल मासिक खर्च 400 से 800 रुपये तक कम हो सकता है। इस समय जब हर सामान महंगा हो रहा है और व्यापारियों की लागत बढ़ती जा रही है, तब गैस सिलेंडर में यह कटौती उन्हें कुछ राहत जरूर देगी।
घरेलू गैस उपभोक्ताओं के लिए कोई राहत नहीं
अब बात करते हैं घरेलू सिलेंडर की। तो यहां पर कोई राहत नहीं मिली है। 14.2 किलो वाले घरेलू एलपीजी सिलेंडर की कीमतें इस बार भी स्थिर रखी गई हैं। याद दिला दें कि आठ अप्रैल को इसमें पचास रुपये की बढ़ोतरी की गई थी, जो अब भी लागू है। दिल्ली में अभी भी घरेलू गैस का रेट 803 रुपये है, मुंबई में 852.50, कोलकाता में 879 और चेन्नई में 868.50 रुपये है। इसका मतलब साफ है कि आम उपभोक्ता को फिलहाल कोई राहत नहीं दी गई है।
उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों को मिल रही है सब्सिडी
हालांकि प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत पंजीकृत उपभोक्ताओं को सिलेंडर पर सब्सिडी दी जा रही है। इस योजना के अंतर्गत करीब 10.33 करोड़ उपभोक्ताओं को हर सिलेंडर पर 300 रुपये तक की सब्सिडी मिलती है। लेकिन यह सुविधा केवल उन्हीं को मिलती है जो योजना में रजिस्टर्ड हैं। बाकी आम उपभोक्ता को अभी भी बाजार भाव पर ही सिलेंडर खरीदना पड़ रहा है।
कुछ राज्य जैसे तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश आदि में राज्य सरकारों की ओर से भी कुछ अतिरिक्त सहायता दी जाती है, लेकिन यह लाभ भी केवल सीमित वर्ग तक ही सीमित है। पूरे देश के 32.9 करोड़ एलपीजी उपभोक्ताओं में से उज्ज्वला योजना का लाभ सिर्फ एक तिहाई लोगों को ही मिल रहा है।
हर महीने कीमतों में बदलाव का नियम
एलपीजी सिलेंडर की कीमतों में हर महीने की पहली तारीख को बदलाव किया जाता है। तेल कंपनियां अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें, डॉलर के मुकाबले रुपये की स्थिति और टैक्स जैसी स्थितियों के आधार पर कीमत तय करती हैं। इस बार कमर्शियल सिलेंडर में बदलाव हुआ, लेकिन घरेलू सिलेंडर की कीमतों को जस का तस रखा गया है। अब लोगों की निगाहें जून महीने पर टिकी हैं कि शायद तब उन्हें कोई राहत मिल सके।
मध्यम और निम्न वर्ग को सबसे ज्यादा असर
घरेलू गैस के दाम स्थिर रखने का सीधा असर उन परिवारों पर पड़ता है जिनका मासिक बजट सीमित होता है। मध्यम और निम्न वर्ग के लोग रसोई गैस की हर बढ़ोतरी को सीधे अपने खाने के खर्च में महसूस करते हैं। ऐसे में जब खाने पीने की चीजें पहले से ही महंगी हो रही हैं, तब गैस के दाम स्थिर रहने से थोड़ी राहत की उम्मीद रहती है। लेकिन अब जब दो महीने से कोई राहत नहीं मिली है, तो लोगों को उम्मीद है कि अगली बार यानी जून में शायद कुछ बदलाव देखने को मिले।
क्या कहता है बाजार का ट्रेंड
बाजार के जानकारों की मानें तो अगर आने वाले समय में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें कम होती हैं और डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत होता है, तो घरेलू गैस की कीमतों में भी कटौती संभव है। अभी के लिए तेल कंपनियां स्थिति का आंकलन कर रही हैं और बदलाव उसी आधार पर किए जाएंगे।
इस बार की गैस सिलेंडर कटौती ने छोटे व्यापारियों को थोड़ी राहत जरूर दी है, लेकिन आम घरेलू उपभोक्ता अब भी इंतजार की स्थिति में है। खासकर वे लोग जो उज्ज्वला योजना में नहीं आते और पूरी कीमत पर सिलेंडर खरीदते हैं, उनके लिए यह महीने भी पहले जैसा ही रहा।
अब देखने वाली बात होगी कि अगला महीना यानी जून क्या लेकर आता है। फिलहाल तो कहा जा सकता है कि यह राहत अधूरी है, क्योंकि देश का एक बड़ा वर्ग अब भी रसोई के बजट में फंसा हुआ है।