Advertisement

EPFO का बड़ा ऐलान! कर्मचारियों को ग्रेच्युटी पर मिला बड़ा तोहफा – जानिए नया नियम Gratuity Rule

Gratuity Rule – अगर आप नौकरीपेशा हैं और अपने रिटायरमेंट फंड या ग्रेच्युटी को लेकर फिक्रमंद रहते हैं तो हाल ही में हाईकोर्ट से आई एक बड़ी खबर आपके चेहरे पर मुस्कान ला सकती है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में साफ कर दिया है कि किसी भी कर्मचारी की ग्रेच्युटी बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के नहीं रोकी जा सकती। मतलब अब नियोक्ताओं को अगर किसी कर्मचारी की ग्रेच्युटी रोकनी है तो उन्हें पहले वसूली की प्रक्रिया शुरू करनी होगी और उसे साबित भी करना होगा।

कहानी की शुरुआत कहां से हुई

यह मामला सेंट्रल वेयरहाउसिंग कॉर्पोरेशन के एक पूर्व कर्मचारी जीसी भट से जुड़ा है। भट को 2013 में कंपनी के पैसों के गबन और दुर्व्यवहार के आरोप में बर्खास्त कर दिया गया था। बर्खास्तगी के करीब सात साल बाद भट ने कंपनी से अपनी ग्रेच्युटी की मांग की थी जो लगभग 14 लाख रुपये थी। इस मांग के बाद मामला धीरे-धीरे अदालत तक जा पहुंचा और आखिरकार हाईकोर्ट ने कर्मचारी के पक्ष में फैसला सुनाया।

ग्रेच्युटी अधिकारी का अहम फैसला

11 सितंबर 2023 को ग्रेच्युटी अथॉरिटी ने कंपनी को आदेश दिया कि वह भट को 7.9 लाख रुपये ग्रेच्युटी के रूप में दे और उस पर 10 प्रतिशत सालाना ब्याज भी जोड़ा जाए। इस आदेश ने कर्मचारियों के हक को मजबूत किया और यह दिखाया कि बर्खास्तगी के बावजूद कर्मचारी अपने ग्रेच्युटी हक से वंचित नहीं हो सकते।

Also Read:
18 महीने की DA की रकम पर आया बड़ा अपडेट – जानिए आपका कितना बनेगा पैसा DA Arrears Update

कॉर्पोरेशन का जवाब और तर्क

कॉर्पोरेशन ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। उनका कहना था कि भट ने कंपनी को 1.7 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाया है और इसलिए उसकी ग्रेच्युटी रोकना सही है। कॉर्पोरेशन ने तर्क दिया कि कंपनी को हुए नुकसान की भरपाई के लिए ग्रेच्युटी रोकना जरूरी था। लेकिन कोर्ट ने इस दलील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि जब तक नुकसान की वसूली के लिए उचित कानूनी प्रक्रिया शुरू नहीं होती, तब तक केवल दावा करना काफी नहीं है।

न्यायमूर्ति का स्पष्ट रुख

न्यायमूर्ति सुरज गोविंदराज ने अपने फैसले में कहा कि सिर्फ नुकसान होने का दावा करना पर्याप्त नहीं है। नियोक्ता को पहले कर्मचारी के खिलाफ रिकवरी की विधिवत कार्यवाही करनी चाहिए थी। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि कंपनी के अन्य अधिकारी भी लापरवाही के दोषी हैं क्योंकि वे समय रहते उचित कार्रवाई नहीं कर पाए। इससे नियोक्ताओं को एक सख्त संदेश गया कि कर्मचारियों के अधिकारों से खिलवाड़ अब आसानी से नहीं किया जा सकता।

ग्रेच्युटी अधिनियम और उसकी अहमियत

ग्रेच्युटी अधिनियम 1972 के तहत, पांच साल या उससे अधिक सेवा पूरी करने वाले कर्मचारी को ग्रेच्युटी पाने का अधिकार मिलता है। यह कानून कर्मचारियों के भविष्य की वित्तीय सुरक्षा के लिए बनाया गया है। खास बात यह है कि ग्रेच्युटी कर्मचारी का कानूनी अधिकार है और इसे केवल विशेष परिस्थितियों में ही रोका जा सकता है। अधिनियम की धारा 4(6) के अनुसार, यदि कर्मचारी की वजह से कंपनी को नुकसान हुआ है तो भी उसके खिलाफ पहले कानूनी कार्यवाही अनिवार्य है।

Also Read:
ATM यूजर्स की बढ़ी टेंशन – ATM ट्रांजैक्शन पर अब लगेगा एक्स्ट्रा चार्ज ATM Charge Hike

ग्रेच्युटी रोकने की प्रक्रिया क्या है

अगर किसी कर्मचारी से कंपनी को नुकसान हुआ है तो नियोक्ता को नुकसान के आंकलन के बाद उसे साबित करना होता है। फिर अदालत या किसी सक्षम प्राधिकरण से आदेश लेना होता है। केवल इस प्रक्रिया के बाद ही ग्रेच्युटी की रकम रोकी जा सकती है। सीधा मतलब यह है कि अब बिना पुख्ता सबूत और बिना कानूनी आदेश के कोई भी नियोक्ता किसी भी कर्मचारी की ग्रेच्युटी रोकने की हिमाकत नहीं कर सकता।

कर्मचारियों के लिए यह फैसला क्यों जरूरी है

यह फैसला उन लाखों कर्मचारियों के लिए एक राहत है जो बर्खास्तगी या नौकरी छोड़ने के बाद अपनी ग्रेच्युटी पाने में संघर्ष करते हैं। अब अगर कोई नियोक्ता ग्रेच्युटी रोकने की कोशिश करता है तो कर्मचारी सीधे कानूनी रास्ता अपना सकते हैं। इसके अलावा इस फैसले ने कर्मचारियों में अपने हक को लेकर जागरूकता भी बढ़ाई है।

नियोक्ताओं के लिए भी है सीख

हाईकोर्ट के इस फैसले ने नियोक्ताओं को भी साफ संदेश दे दिया है कि कर्मचारियों के वित्तीय अधिकारों का उल्लंघन करने पर उन्हें कानूनी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। अब उन्हें हर कदम फूंक-फूंक कर रखना होगा और सभी प्रक्रियाओं का पालन करना अनिवार्य होगा। इससे कंपनियों में जवाबदेही बढ़ेगी और कर्मचारियों के हितों की बेहतर सुरक्षा होगी।

Also Read:
NEET Admit Card 2025 NEET UG 2025 Admit Card जारी – अभी डाउनलोड करें अपना एडमिट कार्ड NEET Admit Card 2025

आगे क्या सबक मिलते हैं

कर्मचारियों को चाहिए कि वे ग्रेच्युटी अधिनियम के प्रावधानों को अच्छी तरह समझें। अगर कोई भी नियोक्ता उनकी ग्रेच्युटी रोकने की कोशिश करे तो वे तुरंत श्रम न्यायालय या सक्षम प्राधिकरण के पास अपनी शिकायत दर्ज कराएं। वहीं कंपनियों को भी चाहिए कि वे बिना कानूनी प्रक्रिया के किसी भी कर्मचारी के हक को न छीनें क्योंकि ऐसा करने पर उन्हें बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है।

हाईकोर्ट का यह फैसला एक बार फिर साबित करता है कि कानून का मकसद कमजोर वर्ग की रक्षा करना है। कर्मचारियों की ग्रेच्युटी उनके जीवन की पूंजी है और उसे कोई भी बिना कानूनी आधार के नहीं रोक सकता। यह फैसला न केवल कर्मचारियों के लिए एक मिसाल बनेगा बल्कि नियोक्ताओं को भी कानून का सम्मान करना सिखाएगा। आने वाले समय में यह फैसला इसी तरह के कई मामलों में एक मजबूत आधार साबित हो सकता है।

Also Read:
बस एक बार जमा करें पैसा और हर महीने उठाएं ₹24,000+ की गारंटीड इनकम – Post Office FD Scheme

Leave a Comment