OPS Scheme – केंद्र सरकार ने साल 2004 में पुरानी पेंशन योजना को खत्म कर दिया था और उसकी जगह एक नई पेंशन व्यवस्था यानी NPS (नेशनल पेंशन सिस्टम) लागू कर दी थी, लेकिन अब 19 साल बाद यह मुद्दा फिर से चर्चा में आ गया है। दरअसल, कई सालों से सरकारी कर्मचारियों द्वारा पुरानी पेंशन योजना की वापसी की मांग की जा रही थी। इस बीच राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष जेएन तिवारी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ज्ञापन भेजकर इस मुद्दे पर ध्यान आकर्षित किया है और मांग की है कि कर्मचारियों को पुरानी पेंशन व्यवस्था का विकल्प दिया जाए।
पुरानी पेंशन योजना का इतिहास
2004 में जब केंद्र सरकार ने पुरानी पेंशन योजना को समाप्त किया था, तब यह तय किया गया था कि सरकारी कर्मचारी अब नई पेंशन प्रणाली के तहत अपनी पेंशन की भविष्यवाणी करेंगे। इस नई योजना में कर्मचारियों को अपनी पेंशन के लिए एक निश्चित अंशदान देना पड़ता है और यह पैसा उनके खाते में जमा होता है, जो रिटायरमेंट के बाद उन्हें मिलता है। इस प्रणाली को एनपीएस के तहत लागू किया गया, जिसमें सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों के कर्मचारियों के लिए समान प्रावधान हैं।
कर्मचारियों की आवाज़
हालांकि, इस बदलाव के बाद से कई सरकारी कर्मचारी इस नई पेंशन प्रणाली से असंतुष्ट रहे हैं और पुरानी पेंशन योजना की वापसी की मांग करते रहे हैं। जेएन तिवारी, जो राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष हैं, ने प्रधानमंत्री को कई बार पत्र लिखकर इस मुद्दे को उठाया है। उन्होंने 12 मार्च 2022, 8 अप्रैल 2023, 24 अप्रैल 2023 और 11 जुलाई 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भेजे थे, जिसमें कर्मचारियों को पुरानी पेंशन व्यवस्था का विकल्प देने की मांग की गई थी।
कुछ राज्य फिर से पुरानी पेंशन योजना पर विचार कर रहे हैं
इस बीच कुछ राज्य सरकारों ने कर्मचारियों के विरोध को देखते हुए पुरानी पेंशन योजना की वापसी की कोशिश की है। हालांकि, कई तकनीकी समस्याएं सामने आईं हैं। इनमें से एक बड़ी समस्या यह है कि जिन कर्मचारियों ने एनपीएस के तहत योगदान दिया है, उनके अंशदान की स्थिति अभी भी स्पष्ट नहीं है। हालांकि, कुछ राज्यों में इस पर विचार हो रहा है और इस दिशा में कदम भी उठाए जा रहे हैं।
केंद्र सरकार का रुख और समिति का गठन
केंद्र सरकार ने भी इस मुद्दे पर ध्यान दिया है और एक समिति का गठन किया है। इस समिति ने पुरानी पेंशन योजना को लेकर अपनी रिपोर्ट तैयार की है, जो जल्द ही सरकार को सौंपी जा सकती है। इस रिपोर्ट में पुरानी पेंशन योजना के पुनर्नियोजन की संभावना पर विचार किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, पुरानी पेंशन योजना को फिर से लागू किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए कुछ व्यावहारिक और वित्तीय चुनौतियाँ हैं, जिन्हें हल किया जाना चाहिए।
क्या पुरानी पेंशन योजना फिर से लागू हो सकती है?
अगर केंद्र सरकार पुरानी पेंशन योजना को फिर से लागू करने का निर्णय लेती है तो इसका प्रभाव देशभर के लाखों सरकारी कर्मचारियों पर पड़ेगा। पुरानी पेंशन योजना के तहत सरकारी कर्मचारियों को एक निश्चित पेंशन मिलती है, जो उनके वेतन के आधार पर निर्धारित की जाती है। इससे कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद निश्चित और स्थिर पेंशन मिलती है, जो उन्हें आर्थिक सुरक्षा प्रदान करती है।
इसके विपरीत, नई पेंशन योजना यानी एनपीएस में कर्मचारियों को अपनी पेंशन के लिए एक हिस्सा जमा करना पड़ता है और यह राशि उनके योगदान के आधार पर होती है। कई कर्मचारी इस प्रणाली को लेकर असंतुष्ट रहे हैं क्योंकि इसमें कोई निश्चित राशि नहीं होती, जो उन्हें रिटायरमेंट के बाद मिल सके।
क्या इस फैसले से चुनावों पर असर पड़ेगा?
जेएन तिवारी ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना में जाने का विकल्प नहीं देती, तो इसका असर अगले चुनावों पर पड़ सकता है। उनका कहना है कि अगर सरकार इस दिशा में कदम नहीं उठाती तो आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में इसे एक बड़ा मुद्दा बनाया जा सकता है। कई राज्यों के कर्मचारियों ने पुरानी पेंशन की वापसी की मांग को लेकर प्रदर्शन भी किए हैं और सरकार से इस मुद्दे पर विचार करने की अपील की है।
पुरानी पेंशन योजना की वापसी को लेकर केंद्रीय सरकार की ओर से जो संकेत मिल रहे हैं, वह निश्चित रूप से कर्मचारियों के लिए राहत की बात हैं। हालांकि, इस दिशा में कई व्यावहारिक चुनौतियाँ हो सकती हैं, जिनका समाधान समय के साथ किया जाएगा। सरकार द्वारा गठित समिति की रिपोर्ट आने के बाद इस मुद्दे पर कोई ठोस निर्णय लिया जा सकता है। इस बीच, कर्मचारी संगठनों और नेताओं का कहना है कि सरकार को कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना का विकल्प जरूर देना चाहिए, ताकि वे रिटायरमेंट के बाद आर्थिक रूप से सुरक्षित रह सकें।
यह मुद्दा अब सिर्फ एक पेंशन योजना से कहीं अधिक हो गया है। यह कर्मचारी कल्याण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है, जिसका असर न केवल कर्मचारियों के जीवन पर पड़ेगा, बल्कि सरकार की नीति और उसकी लोकप्रियता पर भी प्रभाव डालेगा। देखना यह होगा कि सरकार इस मुद्दे को कितनी जल्दी हल करती है और कर्मचारियों को राहत देने के लिए क्या कदम उठाती है।